मुझे पता है यह संवत्सर
पहले जैसा ही गुजरेगा।
बुझी हुई ये आँखें
कब तक
पुतली में सपने भर लेंगी
फटी बिवाई
आगे चलकर
और अधिक पीड़ाएँ देंगी
मुझे पता है बोझा सर से
केवल कंधों पर उतरेगा।
काली रातें
और अधिक हो जाएँगी
पहले से काली
खुद कलियों का
गला घोंट कर
कत्ल करेंगे उनके माली
मुझे पता है पत्ता-पत्ता
टूटेगा, फिर से बिखरेगा।
कुछ लोगों के
नाखूनों की
लंबाई भी और बढ़ेगी
कड़वी और
कसैली बेलें
भाग-भाग कर नीम चढ़ेंगी
सूखा हुआ जख्म
संशय का
सावन में फिर से उभरेगा।